कवि बलिदेव दास की दुर्गा वन्दना
बन्दौं ब्रह्म जाया महा माया वासुदेवी शक्ति ,
शक्तिन की माता एक अलख अखंड है
संत चित्त सूक्ष्म स्वरूप रूप थूल पाव
बलिदेव जाको सर्व रूप बरिबंड है
ज्योति भगवंत की भगवती वृष मेरु हेतु
सर्व घट भासे जो प्रकाशे मार्तंड है
तीनों जुग चारो काल सारे ब्रह्मांडन में
बैरी झुण्ड खंडन में चंडिका प्रचंड है
Friday, October 01, 2010
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3 comments:
sundar
achhi panktiyan hain
achhi hai
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